Tuesday, 24 February 2015

धन्य है दीदी माँ जी का वात्सल्य

जिन्होंने हमें चलना सिखाया, काम करने की प्रेरणा दी, ऐसी मेरी परमपूज्या दीदी माँ जी के चरणों में प्रणाम
करती हूँ। सोच रही हूँ कि दीदी माँ के लिए कुछ कहना कहाँ से शुरू करूँ। आज मैं जिस स्थान पर हूँ वह गुरुदेव का आशीर्वाद और दीदी माँ का प्यार है। दीदी माँ के पचास वर्ष पूरे हुए हैं और इन वर्षों में हमने पैंतीस वर्षों तक उनका सान्निध्य पाया है। हमसे बड़ा सौभाग्यशाली भला और कौन होगा। जब उनका सान्निध्य पहली बार पाया था तबसे ही लगा कि एक माँ का ममत्व उनके हृदय से हमेशा निकलता रहा। मुझे याद है जब बहुत वर्षों पहले हम लोग उनके साथ दूर देहातों में जाया करते थे जब भीषण ठण्ड में ठिठुरते बच्चों और वृद्धों को देखकर उनके भीतर से करुणा प्रवाहित होती थी और वे उन्हें गर्म वस्त्र पहनाकर प्रसन्नता का अनुभव करती थीं। उनके बारे में कुछ कहना मतलब सूरज को दीपक दिखाने के समान है। 

अपनी ओजपूर्ण वाणी से उन्होंने समाज को जगाने का जो काम किया, हिन्दुत्व का परचम लहराया और उसके साथ-साथ यदि करुणा की कोई प्रतिमूर्ति हैं, तो वो हैं हमारी दीदी माँ। माँ कैसी होनी चाहिए मेरी दीदी माँ ने इसे चरितार्थ करके दिखलाया है। मुझे यह कहते हुए गर्व होता है कि मैं एक ऐसी बच्ची थी जिसे ऐसी दीदी माँ जी का प्यार हमेशा मिला है। मैं प्रार्थना करती हूँ कि हम सबकी आयु भी दीदी माँ जी को लग जाये और वे दीर्घायु रहकर समाज को अपने सेवाकार्यों से धन्य करती रहें।

साध्वी निरंजन ज्योति
केन्द्रीय राज्यमंत्री - भारत सरकार

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