“भारत में गाय को पशु नहीं माना गया क्योंकि पषु का पालन मानव को करना पड़ता है किन्तु गाय स्वयं मानव का पालन करती है। गाय प्रकृति द्वारा प्रदत दूध का भण्डार, जैविक खाद, कीटनाशक दवाओं का प्राकृतिक कारखाना एवं बिना पूंजी का चलता फिरता बिजलीघर है। गाय कभी न रिक्त होने वाला आयुर्वेदिक औषधि का भंडार है। गौमाता मात्र इसी लोक में नहीं बल्कि परलोक की यात्रा में भी वैतरणी को पार कराने वाली नैया है”
गौमाता वात्सल्य की प्रतिमूर्ति है। गाय ही ऐसा प्राणी है जिसके दूध में वह सारे तत्व उपस्थित होते हैं जो स्त्री के दूध में होते हैं। दुर्भाग्य से जिस किसी भी मानव षिषु को माँ का दूध नहीं मिल पाता, गौदुग्ध ही उसके जीवन को आधार देता है। षारीरिक पुष्टि और बुद्धि की वृद्धि हेतु भी गाय के दूध को वैज्ञानिक आधार पर सर्वश्रेष्ठ माना गया है। न केवल दूध बल्कि उसके गौमूत्र एवं गोबर भी मानव जीवन एवं प्रकृति के लिए बहुमूल्य हैं। पौराणिक ग्रन्थों में भी गौसेवा को मोक्षदाता कर्म माना गया है।

वात्सल्य ग्राम की एक समग्र दृष्टि
भगवान रास रासेश्वर की पवित्र धरती वृन्दावन में पूज्य महामण्लेश्वर युगपुरूष स्वामी परमानन्द जी महराज की परम अनुकम्पा से तथा परम पूज्य दीदी माँ साध्वी ऋतम्भरा जी की पावन छत्रछाया व दिशा निर्देश में स्थापित ”वात्सल्य ग्राम“ में भाव सम्बन्धों से अन्तर्गुम्फित अनूठे पारिवाकि ताने-बाने को बुना गया है।
- जहाँ पर विभिन्न निराश्रित एक दूसरे के पूरक हो रहे हैं। जहाँ आने वाले प्रत्येक निराश्रित शिशु भाव सम्बन्धों से अन्तर्गुम्फित माँ की ममता (यशोदा गोद) के साथ-साथ नानी और मौसी का स्नेह, अपना घर अपना आँगन अपनी रसोई उप्लब्ध हैं।
-जहाँ देश की तीन संवेदनहीन व्यवस्थाओं -अनाथालय, नारी निकेतन और वृद्धाश्रम का विकल्प है-वात्सल्य परिवार।
-जहाँ माँ स्वाभिमान और संस्कारों के साथ जीती है और वही अपनी पुत्रियों और पुत्रों में घुट्टी बनाकर भर देती है।
-जहाँ निराश्रित शिशु को केवल पाल पोस कर बड़ा कर देना ही लक्ष्य नहीं है अपितु पूर्णता के साथ प्रयास है कि यहाँ पला बढ़ा प्रत्येक नन्हा शिशु भविष्य में विभिन्न क्षेत्रों में नेतृत्व प्रदान करे।
- जहाँ पर विभिन्न निराश्रित एक दूसरे के पूरक हो रहे हैं। जहाँ आने वाले प्रत्येक निराश्रित शिशु भाव सम्बन्धों से अन्तर्गुम्फित माँ की ममता (यशोदा गोद) के साथ-साथ नानी और मौसी का स्नेह, अपना घर अपना आँगन अपनी रसोई उप्लब्ध हैं।
-जहाँ देश की तीन संवेदनहीन व्यवस्थाओं -अनाथालय, नारी निकेतन और वृद्धाश्रम का विकल्प है-वात्सल्य परिवार।
-जहाँ माँ स्वाभिमान और संस्कारों के साथ जीती है और वही अपनी पुत्रियों और पुत्रों में घुट्टी बनाकर भर देती है।
-जहाँ निराश्रित शिशु को केवल पाल पोस कर बड़ा कर देना ही लक्ष्य नहीं है अपितु पूर्णता के साथ प्रयास है कि यहाँ पला बढ़ा प्रत्येक नन्हा शिशु भविष्य में विभिन्न क्षेत्रों में नेतृत्व प्रदान करे।
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