Wednesday, 11 September 2013

परमशक्ति पीठ उत्तराखण्ड की ध्वस्त घाटियों में आशा की किरण...

 उत्तराखण्ड की प्राकृतिक विनाशलीला ने लोगों की जिंदगियां तो छीनी ही उनके घर भी उजाड़ दिए। पहाड़ी इलाकों के अधिकांश गांवों में स्थित घर जलप्रलय की लहरों से जर्जर हो चुके हैं। बड़ी संख्या में महिलाएं बेसहारा हुई हैं और बच्चे अनाथ। क्योंकि पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले अधिकांश पुरुष सदस्य छोटे-मोटे व्यापार-व्यवसाय के लिए चारधाम यात्रा मार्ग पर गए थे जहां हुई भीषण जलप्रलय उन्हें  अपने साथ बहा ले गई।

बचाव कार्य तो पूरा हो गया लेकिन अब बहुत जल्द भीषण ठण्ड इस पूरे इलाके को अपनी चपेट में ले लेगी। दरक चुके घर रहने लायक नहीं बचे। घरों के साथ बच्चों की पाठ्य पुस्तकें, यूनिफार्म आदि भी अतिवृष्टि की भेंट चढ़ गईं। अब वे कहां रहेंगे? वे स्कूल कैसे जाएंगे? जो भी कुछ पास में था जिसे दिन-रात मेहनत करके जोड़ा बटोरा था वह सबकुछ एक ही झटके में निराशा की गहराईयों में डूबकर ओझल हो गया। अब आगे क्या होगा? जीवन कैसे कटेगा। त्रासदी गुजर जाने के बाद अब ये सारे  प्रश्न हर उस परिवार के सामने हैं जो उजड़ चुका है। इस दुर्गम इलाके के कई गांवों में तो घरौंदों का नामोनिशान ही मिट गया है। दर्द के निशानों से जहां तहां पटी पड़ी जमीन और दूर क्षितिज तक फैला आसमान ही अब उनका ओढ़न-बिछावन है।

ऐसी विषम परिस्थितियों में परमशक्ति पीठ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है इन आपदा पीडि़तों को सहारा देने के लिए। परमपूज्या दीदी माँ साध्वी ऋतम्भरा जीे का ममत्व जाग उठा इन गिरिवासी बंधुओं के लिए और एक व्यापक कार्ययोजना बनाई गई संस्था ‘परमशक्ति पीठ’ के द्वारा। संस्था के कर्मठ और सेवाभावी कार्यकर्ता भाई-बहन दुर्गम पहाड़ों और कठिन मौसमी चुनौतियों को पार करते हुए आवश्यक राहत सामग्री के साथ उन गांवों तक पहुँचे जहां के निवासी खुले आसमान के नीचे सहायता की प्रतीक्षा कर रहे थे।

वात्सल्यमूर्ति दीदी माँ जी कई ऐसे घरों तक पहुंची जहां मौत का सन्नाटा पसरा हुआ था। कहीं किसी मां की गोद उजड़ी हुई थी तो कहीं किसी मांग का सिन्दूर बह गया था। अपनों के बिछोह में आंसू बहाते लोगों को उनके बीच उनके आंगन में बैठकर दीदी मां की ममता ने उनके दिलों को दुलारा।

रास्ता कठिन जरूर था लेकिन भीष्म संकल्पों की राह कौन रोक सकता है। कठिन रास्तों पर पैदल चलते हुए वात्सल्य की गंगा उन पहाड़ी क्षेत्रों तक पहुंची जहाँ आपदा पीडि़त आबादी अपनों को खो देने के ताप से तप रही थी। दीदी मां के वात्सल्य की शीतल धारा ने उन्हें धैर्य दिया। 

माँ के बताये रास्ते पर ही संतानें चलती हैं। तमाम खतरों को पार कर आपदाग्रस्तों के बीच पहुंचने वाली अपनी दीदी मां की प्रेरणा पाकर उनकी कई साध्वी शिष्याओं के अन्तःकरण से आवाज उठी और वे भी उत्तराखण्ड के सुदूर पहाड़ों में चल पड़ी दुखी मानवता को राहत पहुंचाने के लिए।

No comments:

Post a Comment