
बचाव कार्य तो पूरा हो गया लेकिन अब बहुत जल्द भीषण ठण्ड इस पूरे इलाके को अपनी चपेट में ले लेगी। दरक चुके घर रहने लायक नहीं बचे। घरों के साथ बच्चों की पाठ्य पुस्तकें, यूनिफार्म आदि भी अतिवृष्टि की भेंट चढ़ गईं। अब वे कहां रहेंगे? वे स्कूल कैसे जाएंगे? जो भी कुछ पास में था जिसे दिन-रात मेहनत करके जोड़ा बटोरा था वह सबकुछ एक ही झटके में निराशा की गहराईयों में डूबकर ओझल हो गया। अब आगे क्या होगा? जीवन कैसे कटेगा। त्रासदी गुजर जाने के बाद अब ये सारे प्रश्न हर उस परिवार के सामने हैं जो उजड़ चुका है। इस दुर्गम इलाके के कई गांवों में तो घरौंदों का नामोनिशान ही मिट गया है। दर्द के निशानों से जहां तहां पटी पड़ी जमीन और दूर क्षितिज तक फैला आसमान ही अब उनका ओढ़न-बिछावन है।

वात्सल्यमूर्ति दीदी माँ जी कई ऐसे घरों तक पहुंची जहां मौत का सन्नाटा पसरा हुआ था। कहीं किसी मां की गोद उजड़ी हुई थी तो कहीं किसी मांग का सिन्दूर बह गया था। अपनों के बिछोह में आंसू बहाते लोगों को उनके बीच उनके आंगन में बैठकर दीदी मां की ममता ने उनके दिलों को दुलारा।
माँ के बताये रास्ते पर ही संतानें चलती हैं। तमाम खतरों को पार कर आपदाग्रस्तों के बीच पहुंचने वाली अपनी दीदी मां की प्रेरणा पाकर उनकी कई साध्वी शिष्याओं के अन्तःकरण से आवाज उठी और वे भी उत्तराखण्ड के सुदूर पहाड़ों में चल पड़ी दुखी मानवता को राहत पहुंचाने के लिए।
No comments:
Post a Comment