Wednesday, 18 September 2013

हमी तो भोगेंगे परिणाम...

बनाये बड़े-बड़े हैं डाम ।
हमी तो भोगेंगे परिणाम ।।

बर्फीली वन कन्दराओं को भी न हमने छोड़ा ।
सभी जगह दौड़ाया हमने अपने मन का घोड़ा ।।

मौज और मस्ती करने को पहुंचे तीरथ धाम ।
हमी तो भोगेंगे परिणाम ।

गंगा की अस्मत से हमने खेल किये मन चाहे ।
गंगा को गंगा न माना दूशित दृव्य बहाये ।।

क्रुद्ध हुईं गंगा तो क्यों मचा रहे कोहराम ।
हमी तो भोगेंगे परिणाम ।

पहले उत्तरार्द्ध जीवन में तीर्थ यात्रा करते ।
और तीर्थ की पावनता के नियम सभी थे वरते।।

श्रृद्धा से दर्शन करते थे मिलती शांति तमाम ।।
हमी तो भोगेंगे परिणाम ।

अब श्रृद्धा को भोगवाद ने पीछे छोड़ दिया है ।
नई पीढ़ी के नव चिन्तन ने विकसित मोड़ लिया है।।

नश्ट किये प्राकृतिक उपक्रम बना दिये है डाम ।
हमी तो भोगेंगे परिणाम ।

सृश्टि के विपरीत बनाये भवन तीर्थ स्थल में ।
प्रलंकार को छोड़ सभी कुछ समा गया है जल में ।।

हमें सुधरने को प्रकृति ने भेजा है पैगाम ।।
हमी तो भोगेंगे परिणाम।

- उमाशंकर राही
 सौजन्य - वात्सल्य निर्झर, सितम्बर 2013 

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