बनाये बड़े-बड़े हैं डाम ।
हमी तो भोगेंगे परिणाम ।।
बर्फीली वन कन्दराओं को भी न हमने छोड़ा ।
सभी जगह दौड़ाया हमने अपने मन का घोड़ा ।।
मौज और मस्ती करने को पहुंचे तीरथ धाम ।
हमी तो भोगेंगे परिणाम ।
गंगा की अस्मत से हमने खेल किये मन चाहे ।
गंगा को गंगा न माना दूशित दृव्य बहाये ।।
क्रुद्ध हुईं गंगा तो क्यों मचा रहे कोहराम ।
हमी तो भोगेंगे परिणाम ।
पहले उत्तरार्द्ध जीवन में तीर्थ यात्रा करते ।
और तीर्थ की पावनता के नियम सभी थे वरते।।
श्रृद्धा से दर्शन करते थे मिलती शांति तमाम ।।
हमी तो भोगेंगे परिणाम ।
अब श्रृद्धा को भोगवाद ने पीछे छोड़ दिया है ।
नई पीढ़ी के नव चिन्तन ने विकसित मोड़ लिया है।।
नश्ट किये प्राकृतिक उपक्रम बना दिये है डाम ।
हमी तो भोगेंगे परिणाम ।
सृश्टि के विपरीत बनाये भवन तीर्थ स्थल में ।
प्रलंकार को छोड़ सभी कुछ समा गया है जल में ।।
हमें सुधरने को प्रकृति ने भेजा है पैगाम ।।
हमी तो भोगेंगे परिणाम।
हमी तो भोगेंगे परिणाम ।।
बर्फीली वन कन्दराओं को भी न हमने छोड़ा ।
सभी जगह दौड़ाया हमने अपने मन का घोड़ा ।।
मौज और मस्ती करने को पहुंचे तीरथ धाम ।
हमी तो भोगेंगे परिणाम ।
गंगा की अस्मत से हमने खेल किये मन चाहे ।
गंगा को गंगा न माना दूशित दृव्य बहाये ।।
क्रुद्ध हुईं गंगा तो क्यों मचा रहे कोहराम ।
हमी तो भोगेंगे परिणाम ।
पहले उत्तरार्द्ध जीवन में तीर्थ यात्रा करते ।
और तीर्थ की पावनता के नियम सभी थे वरते।।
श्रृद्धा से दर्शन करते थे मिलती शांति तमाम ।।
हमी तो भोगेंगे परिणाम ।
अब श्रृद्धा को भोगवाद ने पीछे छोड़ दिया है ।
नई पीढ़ी के नव चिन्तन ने विकसित मोड़ लिया है।।
नश्ट किये प्राकृतिक उपक्रम बना दिये है डाम ।
हमी तो भोगेंगे परिणाम ।
सृश्टि के विपरीत बनाये भवन तीर्थ स्थल में ।
प्रलंकार को छोड़ सभी कुछ समा गया है जल में ।।
हमें सुधरने को प्रकृति ने भेजा है पैगाम ।।
हमी तो भोगेंगे परिणाम।
- उमाशंकर राही
सौजन्य - वात्सल्य निर्झर, सितम्बर 2013
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