Wednesday, 25 September 2013

कामधेनु गौगृह - वात्सल्य ग्राम का एक संकल्प

“भारत में गाय को पशु नहीं माना गया क्योंकि पषु का पालन मानव को करना पड़ता है किन्तु गाय स्वयं मानव का पालन करती है। गाय प्रकृति द्वारा प्रदत  दूध का भण्डार, जैविक खाद, कीटनाशक दवाओं का प्राकृतिक कारखाना एवं बिना पूंजी का चलता फिरता बिजलीघर है। गाय कभी न रिक्त होने वाला आयुर्वेदिक औषधि का भंडार है। गौमाता मात्र इसी लोक में नहीं बल्कि परलोक की यात्रा में भी वैतरणी को पार कराने वाली नैया है”

गौमाता वात्सल्य की प्रतिमूर्ति है। गाय ही ऐसा प्राणी है जिसके दूध में वह सारे तत्व उपस्थित होते हैं जो स्त्री के दूध में होते हैं। दुर्भाग्य से जिस किसी भी मानव षिषु को माँ का दूध नहीं मिल पाता, गौदुग्ध ही उसके जीवन को आधार देता है। षारीरिक पुष्टि और बुद्धि की वृद्धि हेतु भी गाय के दूध को वैज्ञानिक आधार पर सर्वश्रेष्ठ माना गया है। न केवल दूध बल्कि उसके गौमूत्र एवं गोबर भी मानव जीवन एवं प्रकृति के लिए बहुमूल्य हैं। पौराणिक ग्रन्थों में भी गौसेवा को मोक्षदाता कर्म माना गया है।
    
वात्सल्य ग्राम, वृंदावन के संदर्भ में वहाँ स्थापित कामधेनु गौ-गृह (गौशाला) अति महत्वपूर्ण है। वे नवजात शिशु जिन्हें उनकी माता किन्हीं कारणों से वात्सल्य ग्राम में छोड़ देती हैं उन्हें माँ के दूध की आवष्यकता सबसे पहले होती है, उनकी इस कमी को ‘कामधेनु गौ-गृह’ की गौमाताएं ही पूर्ण करती हैं। जिनके द्वारा यहाँ के सैकड़ों नन्हें बच्चों का जीवन पुष्ट हो रहा है। वात्सल्य ग्राम, वृंदावन की गौशाला में आपका सहयोग आपको न केवल गौसेवा का पुण्य देगा बल्कि आप घर बैठे ही उन नन्हें नवजात बच्चों की सेवा भी कर सकेंगे जिन्हें किन्ही कारणों से मातृत्व सुख नहीं मिल सका।

वात्सल्य ग्राम की एक समग्र दृष्टि
भगवान रास रासेश्वर की पवित्र धरती वृन्दावन में पूज्य महामण्लेश्वर युगपुरूष स्वामी परमानन्द जी महराज की परम अनुकम्पा से तथा परम पूज्य दीदी माँ साध्वी ऋतम्भरा जी की पावन छत्रछाया व दिशा निर्देश में स्थापित ”वात्सल्य ग्राम“ में भाव सम्बन्धों से अन्तर्गुम्फित अनूठे पारिवाकि ताने-बाने को बुना गया है।

- जहाँ पर विभिन्न निराश्रित एक दूसरे के पूरक हो रहे हैं। जहाँ आने वाले प्रत्येक निराश्रित शिशु भाव सम्बन्धों से अन्तर्गुम्फित माँ की ममता (यशोदा गोद) के साथ-साथ नानी और मौसी का स्नेह, अपना घर अपना आँगन अपनी रसोई उप्लब्ध हैं।

-जहाँ देश की तीन संवेदनहीन व्यवस्थाओं -अनाथालय, नारी निकेतन और वृद्धाश्रम का विकल्प है-वात्सल्य परिवार।

-जहाँ माँ स्वाभिमान और संस्कारों के साथ जीती है और वही अपनी पुत्रियों और पुत्रों में घुट्टी बनाकर भर देती है।

-जहाँ निराश्रित शिशु को केवल पाल पोस कर बड़ा कर देना ही लक्ष्य नहीं है अपितु पूर्णता के साथ प्रयास है कि यहाँ पला बढ़ा प्रत्येक नन्हा शिशु भविष्य में विभिन्न क्षेत्रों में नेतृत्व प्रदान करे।

Wednesday, 18 September 2013

हमी तो भोगेंगे परिणाम...

बनाये बड़े-बड़े हैं डाम ।
हमी तो भोगेंगे परिणाम ।।

बर्फीली वन कन्दराओं को भी न हमने छोड़ा ।
सभी जगह दौड़ाया हमने अपने मन का घोड़ा ।।

मौज और मस्ती करने को पहुंचे तीरथ धाम ।
हमी तो भोगेंगे परिणाम ।

गंगा की अस्मत से हमने खेल किये मन चाहे ।
गंगा को गंगा न माना दूशित दृव्य बहाये ।।

क्रुद्ध हुईं गंगा तो क्यों मचा रहे कोहराम ।
हमी तो भोगेंगे परिणाम ।

पहले उत्तरार्द्ध जीवन में तीर्थ यात्रा करते ।
और तीर्थ की पावनता के नियम सभी थे वरते।।

श्रृद्धा से दर्शन करते थे मिलती शांति तमाम ।।
हमी तो भोगेंगे परिणाम ।

अब श्रृद्धा को भोगवाद ने पीछे छोड़ दिया है ।
नई पीढ़ी के नव चिन्तन ने विकसित मोड़ लिया है।।

नश्ट किये प्राकृतिक उपक्रम बना दिये है डाम ।
हमी तो भोगेंगे परिणाम ।

सृश्टि के विपरीत बनाये भवन तीर्थ स्थल में ।
प्रलंकार को छोड़ सभी कुछ समा गया है जल में ।।

हमें सुधरने को प्रकृति ने भेजा है पैगाम ।।
हमी तो भोगेंगे परिणाम।

- उमाशंकर राही
 सौजन्य - वात्सल्य निर्झर, सितम्बर 2013 

Friday, 13 September 2013

सैनिकों की कलाई पर सजी वात्सल्य की राखी

मथुरा-वृन्दावन मार्ग स्थित वात्सल्य ग्राम में प्रति वर्ष की भाँति इस वर्ष भी राष्ट्र रक्षा सूत्र बन्धन यात्रा के माध्यम से फिरोज़पुर पंजाब सीमा पर सैनिकों के राखियाँ बाँधी गईं। वात्सल्य ग्राम में 19 अगस्त 2013 को रक्षा सूत्र समर्पण समारोह सम्पन्न हुआ। जिसमें एक दर्जन विद्यालयों और सामजिक संस्थाओं ने युगपुरूष स्वामी परमानन्द गिरि जी महाराज को राखियाँ सौंपी।

इस अवसर पर अपने आशीर्वचन में युगपुरूष स्वामी परमानन्द गिरि ने कहा कि संसार जब से चल रहा है और जब तक चलेगा व्यक्ति के जीवन में संघर्ष रहता है और रहेगा यह संघर्ष दो प्रकार का होता है व्यक्तिगत जीवन में और सामाजिक जीवन में आन्तरिक और वाह्य संघर्ष रहता है और वह राष्ट्र की सीमाओं में और समाज की सीमाओं में भी इसी लिए बाहरी और आन्तरिक रक्षा के लिए भारत ने बहुत कुछ सोचा है। जैसे महाभारत बाहरी रक्षा के लिए और गीता उपनिषद हमारे आन्तरिक रक्षा के लिए है। वह सब हमारे विश्वास पर निर्भर करता है। भारत ने बहुत पहले से ही ऐसे विश्वास दिये हैं जिनसे हम अपने रिश्तों को पवित्र रख सकें। भाई-बहन का रिश्ता भी उनमें से एक है। उन रिश्तों को पवित्र और मजबूत रख सकें उसके लिए एक परम्परा चल रही है वह है रक्षा बन्धन। वात्सल्य ग्राम में ऋतम्भरा ने सैनिकों के राखी बाँधने जो यह कार्य किया है वह बहुत अच्छा है देश भर से लोग राखियाँ भेजते हैं यहाँ पर जो विद्यालय एवं संस्थाएं राखियाँ लेकर आए हैं वह भी सौभाग्यशाली हैं क्योंकि उनकी राखियाँ उन सैनिकों की कलाई की शोभा बढ़ाएंगी जो देश की रक्षा में लगे हुए हैं। आज देश में विश्वास की कमी आ गयी है। हम अपनी शक्ति को पहचान नहीं पा रहा है जिसके कारण हमारा शत्रु हमारी सीमाओं में घुसकर सैनिकों पर हमला कर देते हैं। देश को चाहिए इसका मुँह तोड़ जबाब दे। बेटियों द्वारा सैनिकों के बाँधी गयी राखियाँ उन्हे बल प्रदान करेंगी। उनके विश्वास को बढ़ाएंगी।

सैनिकों के लिए दिल्ली, हरियाणा, हिमांचल प्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात आदि प्रदेशों से तथा रतन लाल फूलकटोरी इन्टर कालेज, कान्हा माखन पब्लिक स्कूल, रमनलाल सोराहवाला पब्लिक स्कूल, समविद गुरुकुलम इन्टरनेशनल स्कूल, गोकुल, कृष्णा ब्रहमरतन विद्यामन्दिर, नचिकेता महाविद्यालय, जबलपुर, गुरुकुल इन्टरनेशनल स्कूल नालागढ़ आदि ने लगभग 2000 राखियाँ सौपीं।

20 अगस्त को प्रातः 5.00 बजे युगपुरूष स्वामी परमानन्द जी ने झण्डी दिखाकर यात्रा को रवाना किया । 50 बेटियों का दल यात्रा की संयोजिका साध्वी शिरोमणि एवं श्रीमती अर्चना शर्मा के नेतृत्व में यात्रा सुबह 8.00 बजे इण्डिया गेट अमर जवान ज्योति पहुँच कर परम पूज्या दीदी माँ साध्वी ऋतम्भरा ने बच्चों के साथ शहीदों को नमन करते हुए पुष्पचक्र समर्पित किया तथा आदरणीय संजय भैया, श्री अशोक सरीन जी, श्री ओम प्रकाश गोयंका जी, श्री अजय गोयनका जी, साध्वी शिरोमणि आदि ने पुष्प अर्पित कर देश के शहीदों को याद किया। पूज्य दीदी माॅ जी ने सभी बेटियों को राष्ट्र प्रेम का संदेश दिया और आशीर्वाद देकर विदा किया। उसके बाद यात्रा ने वात्सल्य मन्दिर रोहिणी सेक्टर-7 में पड़ाव डाला जहाँ रोहिणी के माननीय विधायक श्री जयभगवान अग्रवाल के सानिध्य में भोजन जलपान कर यात्रा ने फिरोज़पुर (पंजाब) बार्डर की ओर प्रस्थान किया और रात्रि फिरोज़पुर में विश्राम कर 21 अगस्त की सुबह सभी ने 137 बटालियन बी.एस.एफ ममदौड के कमाण्डेट मलकियत सिंह की कलाई पर साध्वी शिरोमणि एवं साध्वी सम्पूर्णां ने राखी बाॅधी तथा पूज्या दीदी माँ जी द्वारा दिया गया सैनिक सम्मान पत्र एवं वात्सल्य का प्रतीक चिन्ह व पटका भेंट किया। समविद् की प्रधनाचार्या श्रीमती अर्चना शर्मा के नेतृत्व में सभी बेटियों ने सैनिकों को राखी बाँधी ।

इस अवसर पर कमाण्डेट मिलकिय सिंह ने कहा कि परमशक्ति पीठ वात्सल्य ग्राम द्वारा वहाँ की बहनों ने हमारे सैनिकों के राखी  बाँधी इससे हमारे सैनिकों में देश की सेवा के प्रति और जज्बा पैदा होगा। हमारी बटालियन में ऐसे भी सैनिक हैं जिनकी बहनें नहीं हैं आप लोगों ने उनके राखी बाँध कर उनको यह महसूस करा दिया है कि हम सभी तुम्हारी बहनें है आपने हमारे सैनिकों की हौसला अफज़ाई की इसके बहुत बहुत धन्यवाद। पूज्य दीदी माँ जी वात्सल्य ग्राम में बच्चों की उŸाम परवरिश कर रही हैं उन्हें शिक्षा और संस्कार दे रहीं हैं। उनके अन्दर राष्ट्रभक्ति जगा रहीं है यह बहुत बड़ा काम कर रहीं है। उनके इस कार्य के लिए आभार है।
इसके बाद मस्ता चैकी पर तैनात सैनिकों के राखी बाँधने पहुँचे, जहाँ पर तैनात अस्सिटेन्ट कमाण्डेट रविकुमार, ए.वी.शर्मा, ए.एस.आई जागेश्वर शर्मा, ए.एस.सी तिरवा, दीपक कुमार, ज्योति आदि के साथ सैनिकों के राखियाँ बाँधी। साध्वी शिरोमणि ने सैनिकों के नाम पूज्या दीदी माँ जी का संदेश पढ़कर सुनाया। साध्वी सम्पूर्णा ने राखी गीत व देश भक्ति गीत सुनाया। मीडिया प्रभारी उमाशंकर राही ने ओज पूर्ण काव्य पाठ किया जिससे सैनिकों में जोश और उत्साह का संचार हुआ। 

श्रीमती अर्चना शर्मा एवं श्रीमती दीप्ति शर्मा के नेतृत्व में सभी बच्चों ने भारत- पाक सीमा का अवलोकन किया तथा वहाँ की रक्षा पद्धति को समझा। वहाँ पर सैनिकों के बंकरों को देखा और सैनिकों की जीवन शैली को समझा। सैनिकों ने नम आँखों से सभी को खुशी-खुशी विदा किया और दल ने वात्सल्य ग्राम की ओर प्रस्थान किया।

परम पूज्य सद्गुरुदेव, पूज्या दीदी माँ जी का आशीर्वाद एवं साध्वी शिरोमणि के संयोजन में आयोजित राष्ट्ररक्षा सूत्र बन्धन यात्रा की इस यात्रा में तथा साध्वी सम्पूर्णां, दिनेश शर्मा, समविद गुरुकुलम् की बेटियाँ व प्रधानाचार्या श्रीमती अर्चना शर्मा, श्रीमती दीप्ति शर्मा, रंगनाथ सोनी, गुलशन आदि का विशेष सहयोग रहा ।

- उमाशंकर रही 
 वात्सल्य ग्राम, वृन्दावन

Wednesday, 11 September 2013

परमशक्ति पीठ उत्तराखण्ड की ध्वस्त घाटियों में आशा की किरण...

 उत्तराखण्ड की प्राकृतिक विनाशलीला ने लोगों की जिंदगियां तो छीनी ही उनके घर भी उजाड़ दिए। पहाड़ी इलाकों के अधिकांश गांवों में स्थित घर जलप्रलय की लहरों से जर्जर हो चुके हैं। बड़ी संख्या में महिलाएं बेसहारा हुई हैं और बच्चे अनाथ। क्योंकि पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले अधिकांश पुरुष सदस्य छोटे-मोटे व्यापार-व्यवसाय के लिए चारधाम यात्रा मार्ग पर गए थे जहां हुई भीषण जलप्रलय उन्हें  अपने साथ बहा ले गई।

बचाव कार्य तो पूरा हो गया लेकिन अब बहुत जल्द भीषण ठण्ड इस पूरे इलाके को अपनी चपेट में ले लेगी। दरक चुके घर रहने लायक नहीं बचे। घरों के साथ बच्चों की पाठ्य पुस्तकें, यूनिफार्म आदि भी अतिवृष्टि की भेंट चढ़ गईं। अब वे कहां रहेंगे? वे स्कूल कैसे जाएंगे? जो भी कुछ पास में था जिसे दिन-रात मेहनत करके जोड़ा बटोरा था वह सबकुछ एक ही झटके में निराशा की गहराईयों में डूबकर ओझल हो गया। अब आगे क्या होगा? जीवन कैसे कटेगा। त्रासदी गुजर जाने के बाद अब ये सारे  प्रश्न हर उस परिवार के सामने हैं जो उजड़ चुका है। इस दुर्गम इलाके के कई गांवों में तो घरौंदों का नामोनिशान ही मिट गया है। दर्द के निशानों से जहां तहां पटी पड़ी जमीन और दूर क्षितिज तक फैला आसमान ही अब उनका ओढ़न-बिछावन है।

ऐसी विषम परिस्थितियों में परमशक्ति पीठ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है इन आपदा पीडि़तों को सहारा देने के लिए। परमपूज्या दीदी माँ साध्वी ऋतम्भरा जीे का ममत्व जाग उठा इन गिरिवासी बंधुओं के लिए और एक व्यापक कार्ययोजना बनाई गई संस्था ‘परमशक्ति पीठ’ के द्वारा। संस्था के कर्मठ और सेवाभावी कार्यकर्ता भाई-बहन दुर्गम पहाड़ों और कठिन मौसमी चुनौतियों को पार करते हुए आवश्यक राहत सामग्री के साथ उन गांवों तक पहुँचे जहां के निवासी खुले आसमान के नीचे सहायता की प्रतीक्षा कर रहे थे।

वात्सल्यमूर्ति दीदी माँ जी कई ऐसे घरों तक पहुंची जहां मौत का सन्नाटा पसरा हुआ था। कहीं किसी मां की गोद उजड़ी हुई थी तो कहीं किसी मांग का सिन्दूर बह गया था। अपनों के बिछोह में आंसू बहाते लोगों को उनके बीच उनके आंगन में बैठकर दीदी मां की ममता ने उनके दिलों को दुलारा।

रास्ता कठिन जरूर था लेकिन भीष्म संकल्पों की राह कौन रोक सकता है। कठिन रास्तों पर पैदल चलते हुए वात्सल्य की गंगा उन पहाड़ी क्षेत्रों तक पहुंची जहाँ आपदा पीडि़त आबादी अपनों को खो देने के ताप से तप रही थी। दीदी मां के वात्सल्य की शीतल धारा ने उन्हें धैर्य दिया। 

माँ के बताये रास्ते पर ही संतानें चलती हैं। तमाम खतरों को पार कर आपदाग्रस्तों के बीच पहुंचने वाली अपनी दीदी मां की प्रेरणा पाकर उनकी कई साध्वी शिष्याओं के अन्तःकरण से आवाज उठी और वे भी उत्तराखण्ड के सुदूर पहाड़ों में चल पड़ी दुखी मानवता को राहत पहुंचाने के लिए।

Tuesday, 10 September 2013

आइए, उनका सहारा बनें जिन्हें वक्त ने बेसहारा कर दिया...

केदारघाटी की त्रासदी में बड़ी संख्या में महिलाओं का सिंदूर बहा तथा बच्चों ने अपनों को खोया। वात्सल्य सेवा केन्द्रों द्वारा उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग में केदारघाटी के ऊखीमठ एवं वयुंग कोरखी वात्सल्य सेवा केन्द्रों के माध्यम से परमशक्ति पीठ द्वारा अपने माता या पिता को खो कर निराश्रित हुए सैकड़ों बच्चों को लाकर उनके उत्तम

स्कूली शिक्षा, चिकित्सा, व्यक्तित्व विकास एवं वेलफेअर के साथ ही उनके पारिवारिक निवास की व्यवस्था की गई है। यदि आप भी उनके उज्जवल भविष्य का निर्माण करना चाहते हैं तो अभिभावक सदस्य बनने के लिए तुरन्त सम्पर्क करें
आप अपनी सहयोग राशि परमशक्ति पीठ की नीचे दिए गए बैंक खातों में जमा कर सकते हैं।

आई. सी. आई. सी. आई.
खाता संख्या - 033001001453
IFSC Code - ICIC0000330


एस.बी. आई.
खाता संख्या - 10137296689
IFSC Code - SBIN0007085



अधिक जानकारी हेतु संपर्क करें वेबसाइट- www.vatsalyagram.org, ईमेल - info@vatsalyagram.org

मोबाइल  - 08826888001, 9999971714