Thursday, 1 August 2013

एक चमत्कार - वात्सल्यमयी स्पर्श का

कई बार जीवन का आरंभ ही संघर्षों के बीच होता है। पलक ऐसी ही एक  बच्ची है जो नियति के संघर्ष चक्र से गुजर रही है। इन्दौर की एक सर्द रात में कोई उसे चैराहे पर असहाय अवस्था में छोड़ गया था। मानसिक रूप से विकलांग यह बच्ची एक कपड़े में लिपटी हुई थी, पास ही अखबारी कागज में लिपटी दो रोटियों के सहारे शायद उसके पालकों ने उसे निर्दयतापूर्वक वहाँ छोड़ा होगा। पुलिस को मिली सूचना के बाद उसे शासकीय चिकित्सालय पहुंचाया गया। चिकित्सकीय परीक्षणों में पाया गया कि वह मानसिक रूप से विकलांग है और इस हालत में उसे किसी ऐसे केन्द्र की आवश्यकता है जो इसके इलाज के साथ ही उसके मानसिक स्तर को बढ़ा सके।

‘श्री युगपुरुष धाम बौद्धिक विकास केन्द्र’ इन्दौर की एक ऐसी ही संस्था है जो मानसिक रूप से विकलांग बच्चों की सेवा में जुटी हुई है। इन बच्चों को प्रशिक्षण देने के लिये विशेष रूप से प्रशिक्षित यहाँ की शिक्षिकाओं को इनके बीच काम करते देखना सचमुच एक भावपूर्ण अनुभूति है। मानसिक रूप से असंतुलित बच्चों को संभालना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। यहाँ लाए जाने वाले ज्यादातर बच्चे शुरुआत में अपनी दैनिक क्रियाएं भी नहीं कर पाते हैं। शौच करना, दाँतों को ब्रश करके साफ करना, स्नान करना एवं कपड़े स्वयं ही पहनना जैसी रोजमर्रा की आदतें उनमें डालना सचमुच बहुत धैर्य का काम है। कभी-कभी ये सब सिखाते हुए वे अपनी शिक्षिका को चाँटा तक मार देते हैं। लेकिन उन्हें बहुत सहजता के साथ ये सब झेलते हुए देखा जा सकता है यहाँ पर। पूरी तन्मयता के साथ इनका बस एक ही लक्ष्य होता है कैसे भी हो इन बच्चों में सामान्य जीवन जीने लायक बुद्धि का विकास किया जाये।

पलक की दर्दभरी कहानी सुनाते हुए इस केंद्र की प्रधानाचार्या श्रीमती अनिता शर्मा ने बताया कि इन्दौर कलेक्टर के आदेश के बाद जब इस बच्ची को यहाँ लाया गया तो यह बहुत ही बुरी हालत में थी। पाइल्स की बीमारी से ग्रसित एवं कुपोषण की शिकार पलक दिन भर में 10-12 बार कभी भी शौच कर देती। बदबू इतनी भयंकर कि आप उस कमरे में ही खड़े नहीं हो सकते। रात के सन्नाटे में वह जोर-जोर से चीखें मारकर रोती। आसपास के घरों तक उसकी ये आवाजें जातीं। इन सारी परेशानियों के बीच हम तमाम सारी कोशिशें कर रहे थे कि कैसे भी पलक कुछ नियंत्रित हो पाए लेकिन सारे प्रयास विफल थे। उसकी स्थिति जैसी की तैसी बनी हुई थी। हमारे इस केन्द्र का पूरा स्टाफ वो सारी कोशिशें कर रहा था जो अन्य बच्चों के बौद्धिक स्तर को बढ़ाने के लिये की जाती हैं। हम भगवान के साथ ही पूज्य गुरुदेव युगपुरुष जी महाराज से भी प्रार्थना किया करते कि जैसे भी हो ये बच्ची ठीक हो जाये।

इसी बीच समाचार मिला कि पूज्या दीदी माँ जी इन्दौर पधार रही हैं। हमारी संस्था के महासचिव श्री तुलसी शादीजा जी के आग्रह पर उन्होंने ‘श्री युगपुरुष धाम बौद्धिक विकास केंद्र’ के बच्चों को अपना आशीर्वाद प्रदान करना स्वीकार कर लिया। संस्था का प्रत्येक सदस्य उनके आगमन का समाचार सुनकर उल्लासित था। निश्चित समय पर दीदी माँ जी केंद्र पर पधारीं। श्री परमानन्द हास्पिटल के मुख्य सभागार में कार्यक्रम आयोजित किया गया था जहाँ मानसिक रूप से विकलांग सभी बच्चे एवं संस्था के समस्त सदस्यगण उपस्थित था। अपना स्नेहिल आशीर्वाद प्रदान करते हुए वे एक-एक बच्चे से मिलीं। पलक भी उन सौभाग्यशाली बच्चों में से एक थी जिसके शीश पर दीदी माँ जी ने अपना आशीष प्रदान किया। हमने उन्हें बताया कि यह बच्ची किस तरह से एक असहनीय शारीरिक पीड़ा का सामना कर रही है। वे उसे ध्यानपूर्वक देखती रहीं फिर बोली -‘चिंता नहीं करो, प्रभुकृपा से यह ठीक हो जायेगी।’

बहुत देर तक वह कार्यक्रम चलता रहा। मानसिक रूप से अशक्त होने के बावजूद भी अनेक बच्चों ने दीदी माँ जी के सामने अपनी-अपनी योग्यताओं का प्रदर्शन किया। बच्चों के साथ हास्य-विनोद करते हुए वे विदा हो गईं। रात होते-होते बच्चों को सम्हालने वाली शिक्षिकाओं की वहीं चिंता थी रोजमर्रा की। पलक की चीखना-चिल्लाना। लेकिन उस रात जैसे जादू हो गया। वह शांत थी। दिन भर चाहे जब शौच कर देने वाली पलक की वह शाम जैसे राहत से भरी हुई थी। हम सब चमत्कृत थे कि आज ये क्या हुआ! वह रातभर ठीक से सोई भी। अगले दिन सबेरे से लेकर शाम तक उसने ऐसी एक भी हरकत नहीं की जैसी की वह रोज किया करती थी।’ अनिता जी हाथ जोड़कर कृतज्ञतापूर्वक यह कहती हैं कि यह सब पूज्या दीदी माँ जी की कृपा और पलक पर उनके आशीर्वाद का ही परिणाम है। अन्यथा तो एक दिन में उसका ऐसा कोई इलाज भी नहीं हुआ कि वह अचानक पहले से बेहतर स्थिति में आ जाये।

अनिता जी की यह बात सुनकर मेरी स्मृतियों में वात्सल्य ग्राम के वो सारे बच्चे तैर गये जिन्हें हमने आश्चर्यजनक रूप से स्वस्थ होते देखा है। वात्सल्य ग्राम, वृंदावन के पालने में पाई गई एक बच्ची जिसकी जन्म से ही अंगुलियाँ नहीं थीं, उन्हें आज हम सब बढ़ते हुए देख रहे हैं। ऐसे अनेकों बच्चे कभी जिनके बचने की भी उम्मीदें नहीं थीं, आज वात्सल्य के आंगन में हँसते-खेलते बड़े हो रहे हैं। दीदी माँ जी के आशीष का यह चमत्कार हम सबने देखा है जिसे पाकर पलक ने एक बड़ी राहत पाई है।  
                                                                                                                                             - देवेन्द्र शुक्ल
सौजन्य - वात्सल्य निर्झर, जून 2013

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