वर्तमान में भारत की मातृशक्ति एक विचित्र समय से गुजर रही है। कभी मातृसता के दम पर भारतवर्ष में सुसंस्कारी पीढि़यों ने स्वदेश को ‘सोने की चिडि़या’ बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई लेकिन आज उसी भारत में नारी की लज्जा को लहूलुहान किया जा रहा है। भारत की नारीशक्ति को सशक्त और समर्थ बनाने के उद्देश्य से विगत 16 से 22 जून 2013 तक ‘बालिका व्यक्तित्व विकास शिविर’ का आयोजन किया गया। आधुनिक जगत और भारत के प्राचीन आध्यात्मिक जीवन मूल्यों के साथ कैसे बालिकाएं अपना समग्र विकास कर सकती हैं, यह शिविर इसी बात को ध्यान में रखकर आयोजित था। हम कैसे जिएं कि हमारा जीवन दूसरों का आदर्श बन जाये, इस विषय पर प्रतिदिन अपने आध्यात्मिक मार्गदर्शन में पूज्या दीदी माँ साध्वी ऋतम्भरा जी ने शिविरार्थी 76 बेटियों को सफल जीवन जीने की कला सिखाई। बेटियां अभीभूत थीं। शिविर समापन के अवसर पर जो अनुभव उन्होंने बताये वो आश्चर्यचकित करते हैं। मात्र सात दिनों की इस अल्प अवधि में उन्होंने ऐसा बहुत कुछ शुभ और सुंदर सीखा जो उनके जीवन में आमूलचूल परिवर्तन कर देने की सामथ्र्य रखता है। पूज्या दीदी मां जी की पावन प्रेरणा और साध्वी शिरोमणि जी तथा उनके अनेक सहयोगियों की अगुवाई में सम्पन्न यह शिविर अनेक अर्थों में विशेष महत्व रखता है। वात्सल्य ग्राम, वृंदावन के पावन प्रांगण में प्रतिवर्ष आयोजित किया जाने वाला यह शिविर बेटियों को केवल आत्मरक्षार्थ शरीर से मजबूत रहने की कला ही नहीं सिखाता बल्कि उनके हृदयों के उन कोमल भावों को भी जगाता है जिनके वशीभूत मनुष्य अपने मनुष्यत्व से ऊपर उठकर देवत्व की ओर अग्रसर होता है।

वात्सल्य ग्राम के मीडिया प्रभारी श्री उमाशंकर जी राही ने जानकारी देते हुए बताया कि वृन्दावन-मथुरा मार्ग स्थित वात्सल्य ग्राम वृन्दावन में बालिका व्यक्तित्व विकास शिविर का शुभारंभ वात्सल्यमूर्ति परमपूज्या दीदी माँ साध्वी ऋतम्भरा जी के करकमलों से दीप प्रज्ज्वलन द्वारा हुआ। इस अवसर पर आपने कहा कि -‘चरित्र निर्माण से ही व्यक्तित्व का निर्माण होता है। बिना चरित्र के व्यक्तित्व का निर्माण संभव नहीं है। जो लोग बाहर से अपने को सजाते सवांरते हैं वह दिखावा करते है, वह उनका ओढ़ा हुआ स्वरूप होता है। व्यक्तित्व ओढ़े नहीं जाते बल्कि उनका निर्माण तो अन्तःकरण से होता है। ओढ़ा हुआ व्यक्तित्व लोगों को प्रसन्न नहीं कर सकता । चेहरा वह दर्पण है जो व्यक्ति के अन्तर को प्रकट करता है। चरित्र निर्माण के लिए व्यक्ति कर्म की कसौटी पर कसा जाता है। आप देखिये कि एक पत्थर भी यदि स्वयं को नदी की तेज धार में समर्पित कर उसके थपेड़ो को सह जाता है तो वह भी शंकर बनकर आस्था का केन्द्र बन जाता है इसके विपरीत जो थपेड़ों से डरकर टूट जाता है वह कंकर बनकर मार्ग में पड़ा लोगों की ठोकरें खाता है। यदि आप अपने मन को साध लेते हैं तो हर मंजिल आपके कदम चूमेंगी। जो बीज मिट्टी में मिलकर नष्ट होने से बचता है वह कभी भी वृक्ष नहीं बन सकता। इसलिए बनने से पहले मिटना सीखिये। इसके लिए हमारे अन्दर समर्पण का भाव आना बहुत आवष्यक है।’
उदघाटन सत्र के मुख्य अतिथि श्री अशोक कुमार राय (पुलिस अधीक्षक -अपराध शाखा) ने अपने उद्बोधन में कहा कि जीवन में बनने का एक समय होता है। उस समय को हमें खोना नहीं चाहिए। जीवन मूल्यवान होता है जिसके हर क्षण में हमें कुछ न कुछ सीखना चाहिए। व्यक्तित्व विकास से ही परिवार, समाज, और देश का विकास होता है। नागरिकों से ही राष्ट्र का निर्माण होता है और राष्ट्ररूपी मकान में हम एक ईंट का काम करते हैं। आप इस व्यक्तित्व विकास शिविर में आये हैं तो एक-एक क्षण उपयोग कुछ न कुछ सीखने में लगाना चाहिए। इस सत्र के विशिष्ठ अतिथि थे श्री राजेश कुमार राय (मुख्य न्यायिक दण्डाधिकारी, मेरठ), श्री राकेश कुमार राय (मुख्य अधिकारी -अग्निशमन), श्री ओमप्रकाश गुप्ता (चेयरमेन -डायमंड शूज), डाॅ. कल्याणी, श्री महेश खण्डेलवाल (अध्यक्ष -वात्सल्य ग्राम) ने भी अपने विचार रखे। इस अवसर पर श्री गोपाल पटवा, डाॅ. ए.के.राय, साध्वी शिरोमणि जी (शिविराधिकारी) ,साध्वी स्वरूप जी, साध्वी सत्यप्रिया जी, साध्वी सुहृदय जी, साध्वी सम्पूर्णा जी, स्वामी सत्यशील जी, स्वामी सत्यदेव जी, श्रीमती दीप्ति शर्मा, साध्वी समाहिता जी, कु. ऋतिका परमानन्द, कु. श्वेता परमानन्द, श्री बालजी चतुर्वेदी आदि उपस्थित रहे।

शिविर के दूसरे दिन बौद्धिक सत्र में योग प्राणायाम से जीवन की दिनचर्या संयमित बनाने के उपाय बताये गये। योगाचार्य श्री शेषपाल जी, दिल्ली ने शिविरार्थियों को दैनिक जीवन में योग का महत्व बताते हुए कहा कि हमारा जीवन श्वासों पर आधारित होता है। व्यक्ति श्वांस लेता वह उतना ही लम्बा जीवन जीता है। व्यक्ति यदि अपनी दिनचर्या में यदि योग को सामिल कर ले तो वह हमेषा निरोग रहेगा। सुश्री अमिता पंचाल (इन्दौर) ने आर्ट एवं क्राफ्ट के माध्यम से षिविरार्थियों को अनुपयोगी सामग्री से कलात्मक वस्तुएं बनाना एवं अंकों के माध्यम से चिन्हों के माध्यम से विभिन्न प्रकार के चित्र तथा बधाई पत्र बनाना सिखाया। साध्वी सम्पूर्णा जी ने संगीत की क्लास लेकर गायन वादन के तरीके सिखाकर गीतों के अनुरूप अभिनय करने (रिकार्ड एक्शन) का तरीका बताया। वात्सल्य मिलन कार्यक्रम के अंतर्गत देशभक्ति गीत प्रतियोगिता आयोजित हुई।
शिविरार्थी बेटियों ने तीसरे दिन परमपूज्या दीदी मां साध्वी ऋतम्भरा जी के पावन सान्निध्य में बैठकर ध्यान साधना के माध्यम से एकाग्रचित होकर अपने लक्ष्य को प्राप्त करना सीखा। इस अवसर पर दीदी मां जी ने कहा कि -‘हमें अपने मन को साधना है तो ध्यान लगाना बहुत आवष्यक है। जब व्यक्ति का मन स्थिर हो जाता है तो वह किसी भी साधना को प्राप्त कर सकता है। उन्होने शिविरार्थियों को समानुभूति, निश्पक्षता और सत्यनिश्ठा के साथ जीवन जीने का पाथेय देते हुए कहा कि -‘जब दूसरे के सुख दुःख को देखकर अपने अन्दर भी सुख और दुःख अहसास करते हैं तो यह हमारी समानुभूति है हम जैसा व्यवहार अपने साथ चाहते हैं वहीं व्यवहार दूसरों के साथ करना चाहिए। हम जो व्यवहार दूसरों के साथ करते हैं वह हमारे लिए भी खड़े हो जाते हैं। हमें अपने जीवन को निश्पक्ष बनाना चाहिए कोई देखे अथवा नहीं देखे अपने निर्णय को साफ रखना चाहिए।’ शिविरार्थी बेटियों को आत्मरक्षार्थ हेतु नियुद्ध कला, रायफल शूटिंग तथा धनुर्विद्या का प्रशिक्षण भी प्रदान किया गया। शिविरार्थियों ने शंखनाद प्रतियोगिता में भाग लिया जिसमें सर्वाधिक लंबे समय तक शंख बजाकर ओजस्विनी ग्रुप की कु. विनीता ने प्रथम स्थान,यशस्विनी ग्रुप की कु. भूमि ने द्वितीय स्थान तथा तपस्विनी ग्रुप की कु. ऋषिका ने तृतीय स्थान प्राप्त किया।

समाजसेविका डॉ उमा तूली ने षिविरार्थियों को सेवा का भाव समझाते हुए बाताया कि मानव सेवा ही प्रभु की सच्ची सेवा है। डॉ कल्याणी ने कहा कि बेटियां यहाँ से बहुत कुछ सीख कर जाती हैं। शिविराधिकारी साध्वी शिरोमणि जी ने अनुषासन का महत्व समझाते हुए कहा कि यदि हमारे जीवन में अनुशासन नहीं हेै तो हम पढ़ने लिखने के बाद भी अशिक्षित हैं। वात्सल्य ग्राम के अध्यक्ष श्री महेष खण्डेलवाल ने षिविरार्थियों को जीवन में प्रसन्नता के महत्व पर प्रकाष डालते हुए उन्होने कि जो लोग प्रसन्न रहते हैं वह स्वस्थ्य रहकर दीर्घ आयु जीते हैं। स्वस्थ रहने के लिए हॅसना बहुत जरूरी होता है जीवन के एक एक क्षण का उपयोग अपने आनन्द के लिए करना चाहिए। वात्सल्य ग्राम के व्यवस्थापक डॉ अभय कुमार राय ने परिश्रम को सफलता की कुंजी बताते हुए कहा कि व्यक्ति परिश्रम और निश्ठा से जो चाहे वह प्राप्त कर सकता है यदि हमें जीवन में सफल होना है तो स्वयं को परिश्रमी, चरित्रवान, निश्ठावान बनाना चाहिए। वात्सल्य ग्राम के मीडिया प्रभारी ने सभी का आभार प्रकट करते हुए अपनी कविता के माध्यम से कहा कि हम जो भी कार्य करें उस कार्य में अपने राश्ट्र की छवि दिखाई देनी चाहिए।
सात दिनों तक चले इस ‘बालिका व्यक्तित्व विकास षिविर का’ समापान समारोह बहुत ही भावपूर्ण कार्यक्रम के साथ हुआ। दीदी माँ साध्वी ऋतम्भरा के पावन सानिध्य में मुख्य अतिथि के रूप में मध्यप्रदेश शासन की स्कूली शिक्षा मंत्री माननीय श्रीमती अर्चना जी चिटनीस, विशिष्ठ अतिथि के रूप में सुप्रसिद्ध समाचार पत्र पंजाब केसरी की सूत्रधार श्रीमती किरण जी चोपड़ा एवं समाचार पत्र ‘हिन्दुस्तान’ के सम्पादक श्री पुष्पेन्द्र जी शर्मा एवं डॉ मनोज मोहन जी शास्त्री उपस्थित रहे।
शिविर समापन के इस अवसर पर माननीय अतिथियों के भावपूर्ण अभिनन्दन के बाद रंगारंग एवं देशभक्तिपूर्ण सांस्कृतिक कार्यक्रमों की श्रृखंला प्रारम्भ हुई जिसमें गुजरात, मध्यप्रदेष, हिमाचल प्रदेष, दिल्ली, हरियाणा, बिहार, छत्तीसगढ़ तथा उत्तरप्रदेष के विभिन्न जिलों से आई 80 बालिकाओं ने अपनी शानदार प्रस्तुतियां दीं। सेवानिवृत्त मेजर आशा माथुर जी जो कि विगत कई वर्षों से वात्सल्य ग्राम में आयोजित किये जाते रहे इन शिविरों में अपने सैन्य अनुभवों को शिविरार्थियों के साथ साझा करती रही हैं, के मार्गदर्शन में, कु. निकिता, कु.वर्षा तथा कु. पूनम द्वारा आत्मरक्षार्थ सिखाये गए जूडो- कराटे, राईफल सूटिंग, धनुर्विद्या का प्रदर्षन करते हुए प्रतिभागियों ने लक्ष्यों को भेदा। सर्वधर्म समभाव को राष्ट्रधर्म मानते हुए ”हम हिन्दुस्तानी” नाटक खेला गया। इस अवसर पर कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि पंजाब केसरी परिवार के ‘वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब’ की श्रीमती किरण चोपड़ा ने कहा कि -‘वात्सल्य ग्राम में आकर दीदी मां जी एवं शिविरार्थी बालिकाओं के साथ बीते उनके पल दिल को छू गए। बालिकाओं ने अपने सांस्कृतिक मंचन में देशभक्ति का भाव पैदा किया। दीदी मां जी की स्नेहमयी छाया में पली बढ़ी बेटियों के भीतर जो भाव मैंने देखे हैं उससे मैं अभीभूत हूं। इस शिविर के समापन अवसर पर शिविरार्थी बेटियों की प्रतिभा देखकर मैं आश्वस्त हूं कि ये बेटियां सबला होने के साथ ही सुसंस्कारित भी हो गई हैं।’ हिन्दुस्तान समाचार के स्थानीय संपादक श्री पुष्पेन्द्र जी शर्मा ने कहा कि -‘देश के युवा वर्ग एवं समाज को एक नई ऊर्जा प्रदान करने वाली साध्वी ऋतम्भरा जी ने वात्सल्य ग्राम में वात्सल्य भाव को जाग्रत करके उसे जिया है। स्त्री के बिना समाज अधूरा है। यह प्रसन्नता की बात है कि वात्सल्य ग्राम बालिकाओं को जीवन जीने की कला सिखा रहा है। दीदी मां साध्वी ऋतम्भरा जी से प्राप्त संस्कारों से युक्त बालिकाएं जहां भी जाएंगी वहां वे ज्ञान और संस्कारों का उजियारा ही फैलाएंगी। इस अवसर पर सुप्रसिद्ध कथावाचक एवं विद्वान आचार्य डॉ मनोज मोहन जी शास्त्री ने भी उपस्थित जनसमुदाय को संबोधित किया। पं. मृदुलकृष्ण जी शास्त्री, डॉ प्रवीण वर्मा तथा श्री आजादसिंह जी सहित अनेक गणमान्य नागरिकगण एवं शिविरार्थी बेटियों के अभिभावक भी उपस्थित रहे।