वात्सल्य ग्राम की गौशाला में जन्में इस नन्हें नवजात बछड़े को देखकर सहसा ही आपका दुलार फूट पड़ा होगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत के कत्लखानों में भोर की पहली किरण के साथ जाने कितनी गौमाताओं को दर्दनाक तरीके से मारने के बाद उनके ऐसे ही सुकोमल गर्भस्थ बछड़ों को मारकर उनकी खाल निकाली जाती है ताकि उनके मुलायम चमड़े द्वारा पर्स या बेल्ट जैसी अनेक वस्तुएं बनाकर ऊँचे दामों पर बेची जा सकें। केवल वही गौवंश इस बर्बरता का शिकार होने से बच पाता है जिनकी देखभाल गौशालाएं कर रही हैं। ‘श्री कामधेनु गौगृह’ एक ऐसी ही सुन्दर गौशाला है जहाँ पूज्या दीदी माँ जी के मार्गदर्शन में 20 प्रकार की भारतीय नस्लों की गायों के संरक्षण एवं संवर्धन का कार्य चल रहा है। आप भी इस पुण्यकार्य में अपना सहयोग प्रदानकर गौवंश की रक्षा में योगदान दे सकते हैं।
Tuesday, 18 November 2014
Saturday, 30 August 2014
विशेष बच्चों की आशाकिरण ‘वैशिष्ट्यम्’

वात्सल्य ग्राम, वृंदावन का पालनाघर आरंभ करने के दिन से ही हमारा यह अनुभव रहा है कि यहाँ माता-पिता अपनी जन्मजात मानसिक या शारीरिक विकलांग संतानों को छोड़ जाते हैं। इस विकलांगता का वैज्ञानिक कारण चाहे जो भी रहा हो लेकिन मैं यह विश्वासपूर्वक कह सकती हूँ कि यदि ऐसा कोई बच्चा किसी परिवार में आया है तो उसे बिना किसी पालनाघर में छोड़े, प्रयत्नपूर्वक उसके ठीक हो जाने तक उसकी सेवा-सुश्रुषा में उसके माता-पिता ने कोई कसर नहीं छोड़नी चाहिये।
यदि उस असहाय बच्चे को आप मार्ग पर कहीं छोड़ रहे हैं तो यह अपने कर्तव्यों से पलायनवाद है। इस जन्म में आप यदि उसकी सेवा से मुँह मोड़ रहे हैं तो निश्चित मानिये कि कई जन्म-जन्मांतरों तक आपका वह कर्तव्य आपका पीछा नहीं छोड़ेगा। इसलिए परमात्मा ने जैसी भी संतान दी है, उसे उपहार मानकर उसकी सेवा कीजिये। भले ही इन बच्चों में मानसिक विकलांगता है तो भी ये स्नेह-प्रेम और वात्सल्य भरा आलिंगन समझते हैं, वे भी तरसते हैं कि कोई उन्हें अपनी ममताभरी बाँहों में भर ले। वात्सल्य पालनाघर के ऐसे ही बच्चों को नवजीवन प्रदान करने के लिए हमने वात्सल्य ग्राम, वृंदावन में विशेष बच्चों के स्कूल ‘वैशिष्ट्यम्’ (आवासीय विद्यालय एवं पुनर्वास केन्द्र) की स्थापना की है। परमशक्ति पीठ का यह अनूठा मानवसेवी प्रकल्प उन नन्हें बच्चों के जीवन को एक नई दिशा देने के पूरे प्रयत्न करेगा जो किसी भी प्रकार की मानसिक या शारीरिक विकलांगता के शिकार हैं। इन बच्चों को अपना वात्सल्य बाँटते हुए मैंने हमेशा अनुभव किया है कि चाहे इनका मस्तिष्क पूरी तरह से कार्य नहीं कर पाता हो लेकिन इनकी भावनाएं भी हम सामान्य मनुष्यों जैसी ही होती हैं। थोड़ा सा श्रम करके इन्हें दिया गया प्रशिक्षण कम से कम इन्हें इस योग्य तो बना ही सकता है कि अपने दैनिक जीवन के कुछ कार्यों में इनकी अन्य लोगों पर निर्भरता थोड़ी कम हो जाये। वात्सल्य ग्राम स्थित ‘वैशिष्ट्यम्’ में कुशल प्रशिक्षकों एवं सभी आवश्यक सुविधाओं के साथ ऐसे विशेष बच्चों को प्रशिक्षण देने का सत्प्रयास आरंभ किये जाने पर मुझे प्रसन्नता है। केवल वात्सल्य ग्राम के बच्चों ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण ब्रजप्रदेश के ऐसे विशेष बच्चों को यहाँ प्रवेश देकर उन्हें कुछ सीमा तक स्वावलंबी बनाने के प्रयत्न किए जाएंगे।
आभार - वात्सल्य निर्झर, अगस्त 2014
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